Saturday, November 1, 2008

socho

Aaj kal jiss tarah ke halat apne desh ke andar chal rahe hai kuchh ussi se sambandhit muddo ko apne sabdo me samatne ki ek choti si kosis maatra hai.... sayad aap wahi samjhenge jo main kahna chahta hu...dhanyabaad

ना देखना चाहे अब सूरत , छिड़ गयी कैसी लडाई,

जाति,धर्म और छेत्र नाम दे ,मारता भाई को भाई.

थी ब्रिटिश सरकार तो,मिलकर सभी ने मोर्चा खोला,

एक थे इरादे सबके, था एक पहने सबने चोला,

क्या गरीबी क्या अमीरी, ना उम्र का किसी को तकाजा--

कोने-कोने से आवाजे, सुन ब्रिटिश सरकार डोला,

आज अपने घर की बाते ,दुसरो की चूल्हा जलाई ,

जाति,धर्म और छेत्र नाम दे ,मारता भाई को भाई.

क्या कभी पुरखो ने सोचा,इस तरह की बात होगी,

सूरज के रौशनी के आगे ,इस तरह से रात होगी,

अस्मिता,अखंडता सोचेंगे सिर्फ मजाक में हम--

एक माँ की कोंख पैदा,जुड्वो की अलग जात होगी,

तेरी बाते मान लू, पर कैसे रोकू अपनी परछाई,

जाति,धर्म और छेत्र नाम दे ,मारता भाई को भाई.

ये राजनीति का खेल है,या अलग सन्देश कोई,

खून का प्यासा जमीं पर,या कलि का भेष कोई,

बुद्ध या गाँधी की सरहद भूलने की चाल तो ना--

वशुधैव कुटुम्बकम यही का नारा,या अलग वो देश कोई,

शान्ति की दुनिया में लौटे,"पाठक" की बस यही दुहाई,

पैसो से ना ख़ुशी मिली है,रह जायेगी यही कमाई.

ना देखना चाहे अब सूरत , छिड़ गयी कैसी लडाई,

जाति,धर्म और छेत्र नाम दे ,मारता भाई को भाई.

Friday, October 31, 2008

Read it once and think ten times....

Yeh life depend hai is net pe.. but kya hai yeh life .. bus woh baar - baar gtalk ki window mei jhaank ke dekhna ki koi online badha kya, woh baar baar orkut mei home par click karke dekhna ki koi scrap badha ki nahi.. woh baar baar yahoomail check karne k baad signout karna.., wohi google pe koi nonsense si search karna.., kuch -kuch der baad gtalk pe kisi ko ping karke poocha.. hi!! wats up.. aur phir se idle state mei chale jaana... kya yehi life hai..

By:- Arpit Jain
s/w engg

Sunday, October 26, 2008

Aadmi

some emotional nd on social issues........hope u all ll b njoying......

न जाने कितने सपने दिखता है आदमी ,
पत्थर को पत्थरो से लडाता है आदमी.

अक्सर अहमियत अपनी,सागर में पाँव रखने की -
दूध माँ से भी छीन सांपो को पिलाता है आदमी.

गम और ख़ुशी छिपे है हर मंजर के आगे पीछे-
किसी को मंजिल किसी को खायी दिखाता है आदमी.

राहो में दिख जायेंगे अक्सर कमाने वाले-
अपनी ही बाजुओ को छुपाता है आदमी.

मन की दरिंदगी या दिल की दीवानगी कहोगे-
रिस्तो को अपने हाथो से मिटाता है आदमी.

सडको पे मारे फिरते है भूखे कदम हजारो-
दुनिया में आज इनको कहा खिलाता है आदमी.

तारे भी तोड़ने के करते बहुत है वादे-
माँ-बाप को वो घर में रुलाता है आदमी.

सूरज की लाली खोजू,बादल की ओट में मैं-
"पाठक" को आज लिखना भी सिखाता है आदमी.

true friendship slogan

: जरुरत नहीं पडती, दोस्त की तस्वीर की.
देखो जो आईना तो दोस्त नज़र आते हैं, दोस्ती में..

येह तो बहाना है कि मिल नहीं पाये दोस्तों से आज..
दिल पे हाथ रखते ही एहसास उनके हो जाते हैं, दोस्ती में..

नाम की तो जरूरत हई नहीं पडती इस रिश्ते मे कभी..
पूछे नाम अपना ओर, दोस्तॊं का बताते हैं, दोस्ती में..

कौन केहता है कि दोस्त हो सकते हैं जुदा कभी..
दूर रेह्कर भी दोस्त, बिल्कुल करीब नज़र आते हैं, दोस्ती में..

सिर्फ़ भ्रम हे कि दोस्त होते ह अलग-अलग..
दर्द हो इनको ओर, आंसू उनके आते हैं , दोस्ती में..

माना इश्क है खुदा, प्यार करने वालों के लिये "अभी"
पर हम तो अपना सिर झुकाते हैं, दोस्ती में..

ओर एक ही दवा है गम की दुनिया में क्युकि..
भूल के सारे गम, दोस्तों के साथ मुस्कुराते हैं, दोस्ती में

Kuchh karna bhi hai


ye poem........meri kalam se tab likhi gayi thi........jab mere bhaiya.jo ek Army man hai....wo kasmir ke halat mujhe suna rahe the.....nd unki baato se mujhe laga ki iss issue ke liye hamari sarkaar hi doshi hai.........so apni sarkaar ko kaashmir issue pe blame karte huye ye poem..... ye poem IITK ke ANTARAAGNI 07 ki top 5 me rahi hai....

उम्मीदों का दामन थामे , कब तक हार मनाओगे,

आश देख वे उजाड़ गए , कब उनको हक़ दिलाओगे,

जो रहते थे महलो में उनका सडको पे है आशियाना-

शान्ति शान्ति की भीख ले कब तक, जूठन उन्हें खिलाओगे.

दुसरे के दरवाजे जाकर अपना दुःख तुम गाते हो,

भाड़े के टट्टू के सामने कुछ भी ना कह पाते हो,

कागज़ पर तो जीत बहुत पर इस रोग की दवा नहीं-

बिन इलाज के घाव बदन पे कैसे तुम रह जाते हो.

मातृभूमि जानो से प्यारी इसका सुख वो पा न सके,

आतंको के साये में जीवन खुल कर कभी वो गा न सके,

लोकतंत्र के राजा तुम, कैसी लोकतंत्र तुम्हारी-

कहने को बलवान बहुत, पर घर की खुशियों को ला न सके.

मानवता के पाठ को पढ़ कर अपनी जान गवाते हो,

सत्य-अहिंसा रट रट के तुम उनको मार न पाते हो,

लोकतंत्र के मंदिर पर हमला,फिर भी हाथ पे हाथ तुम्हारी-

कुछ इज्जत तो है अपनी,पर क्यों नहीं तुम शर्माते हो.

मासूमो की हत्या घर में, हत्यारा घर में रहता है,

हिंसक को मत मारो,कौन धर्म यह कहता है,

बात न मानो "पाठक" की कुछ भी मलाल न होगा-

पर नजदीक से जाकर देखो उनको, कितना दर्द वो सहता है.

Ravan Ram ke bhesh me

main bahut achha to nahi likhta but ha try karta hoon kabhi kabhi.....ye pankti bi nikli hai kabhi aaj ke hi din.......ummid hai galtiyo pe dhyaan nahi diya jayega..or utsahit kiya jayega .......waise kuchh typing mistakes hai....hindi me type karne ki ...


कुर्शी हेतु लडाई लड़े , आदर्श बचे अवशेष में
राम के भेष में ,बापू तेरे देश में

सोने की चिडिया से चल कर बन गए हम भिखारी ,
सत्य अहिंसा की बात नहीं बन गए हम ब्याभिचारी ,
लूट-पाट दंगा-फसाद भेजे अब सन्देश में,
रावन राम के भेष में ,बापू तेरे देश में

लोकतंत्र की नीव हिली संग संसद की गरिमा भारी,
नेता तीन सौ दो वाले या संग असलहा धारी,
अपने दिन मस्ती के बीते जनता चाहे क्लेश में,
रावन राम के भेष में ,बापू तेरे देश में

बिभागो में काम नहीं बिन पैसो के होता,
हिंसावादी फले फूले सत्य यहाँ अब रोता,
हवाला घोटाला आम बात इनके अब श्रीगणेश में,
रावन राम के भेष में ,बापू तेरे देश में

शिक्षा का स्तर ही बदला बढ़ गयी बेरोजगारी,
मर्यादा की बात नहीं असुरक्छित अबला नारी,
माँ बाप अब हुए पराये फंसे सभी है द्वेष में,
रावन राम के भेष में ,बापू तेरे देश में

पथ से बिचलित होय सभी समझे खुद को सयाने,
राम,कृष्ण,गांधी,नेहरु को कौन यहाँ अब माने,
तामस भोज करा के चाहू दिशी जीते ये जनादेश में,
रावन राम के भेष में ,बापू तेरे देश में

जिनकी बलिदानी अमूल्य ,बदतर हालत उनकी दिखती है,
मूर्ति महापुरुष की गिरती,हरदम सुनने को मिलती है,
लाओ मुद्दे मंदिर मस्जिद के ,देते ये उपदेश
मेंरावन राम के भेष में ,बापू तेरे देश में

कुर्शी हेतु लडाई लड़े , आदर्श बचे अवशेष में ,
रावन राम के भेष में ,बापू तेरे देश में