Aaj kal jiss tarah ke halat apne desh ke andar chal rahe hai kuchh ussi se sambandhit muddo ko apne sabdo me samatne ki ek choti si kosis maatra hai.... sayad aap wahi samjhenge jo main kahna chahta hu...dhanyabaad
ना देखना चाहे अब सूरत , छिड़ गयी कैसी लडाई,
जाति,धर्म और छेत्र नाम दे ,मारता भाई को भाई.
थी ब्रिटिश सरकार तो,मिलकर सभी ने मोर्चा खोला,
एक थे इरादे सबके, था एक पहने सबने चोला,
क्या गरीबी क्या अमीरी, ना उम्र का किसी को तकाजा--
कोने-कोने से आवाजे, सुन ब्रिटिश सरकार डोला,
आज अपने घर की बाते ,दुसरो की चूल्हा जलाई ,
जाति,धर्म और छेत्र नाम दे ,मारता भाई को भाई.
क्या कभी पुरखो ने सोचा,इस तरह की बात होगी,
सूरज के रौशनी के आगे ,इस तरह से रात होगी,
अस्मिता,अखंडता सोचेंगे सिर्फ मजाक में हम--
एक माँ की कोंख पैदा,जुड्वो की अलग जात होगी,
तेरी बाते मान लू, पर कैसे रोकू अपनी परछाई,
जाति,धर्म और छेत्र नाम दे ,मारता भाई को भाई.
ये राजनीति का खेल है,या अलग सन्देश कोई,
खून का प्यासा जमीं पर,या कलि का भेष कोई,
बुद्ध या गाँधी की सरहद भूलने की चाल तो ना--
वशुधैव कुटुम्बकम यही का नारा,या अलग वो देश कोई,
शान्ति की दुनिया में लौटे,"पाठक" की बस यही दुहाई,
पैसो से ना ख़ुशी मिली है,रह जायेगी यही कमाई.
ना देखना चाहे अब सूरत , छिड़ गयी कैसी लडाई,
जाति,धर्म और छेत्र नाम दे ,मारता भाई को भाई.