Tuesday, December 2, 2008

आग जलना चाहता हु ........

वो रात दीन देखता रहा,
वो ज़ख्म खाए बैठा है,
वो मरहम नही लगा रहा,
वो आग जलाने बैठा है.....

वो ज़िंदगी उजड़ते देख रहा ,
वो खून को सीच रहा,
वो कभी चुप रहना चाहता है,
वो आग जलाने बैठा है.....

वो ज़ख्म का है करवा ,
वो सहन कर रहा दर्द को,
वो रात दीन जाग रहा ,
वो आग जलाने बैठा है.....

वो उठ खड़ा हो गया,
वो चला है काँटों को राह पर,
वो है आंसुओ का है कारवा
वो आग जलाने बैठा है.....



मुंबई हमलो मैं शहीद हो गए लोगो को मेरा साला


ऋषभ शुक्ला