Sunday, October 26, 2008

Aadmi

some emotional nd on social issues........hope u all ll b njoying......

न जाने कितने सपने दिखता है आदमी ,
पत्थर को पत्थरो से लडाता है आदमी.

अक्सर अहमियत अपनी,सागर में पाँव रखने की -
दूध माँ से भी छीन सांपो को पिलाता है आदमी.

गम और ख़ुशी छिपे है हर मंजर के आगे पीछे-
किसी को मंजिल किसी को खायी दिखाता है आदमी.

राहो में दिख जायेंगे अक्सर कमाने वाले-
अपनी ही बाजुओ को छुपाता है आदमी.

मन की दरिंदगी या दिल की दीवानगी कहोगे-
रिस्तो को अपने हाथो से मिटाता है आदमी.

सडको पे मारे फिरते है भूखे कदम हजारो-
दुनिया में आज इनको कहा खिलाता है आदमी.

तारे भी तोड़ने के करते बहुत है वादे-
माँ-बाप को वो घर में रुलाता है आदमी.

सूरज की लाली खोजू,बादल की ओट में मैं-
"पाठक" को आज लिखना भी सिखाता है आदमी.

3 comments:

Anonymous said...

Man gaye mughle aazam......poem wriying me to aapka koi saami nahi hoga..........[:)]

Navjyot Kaur said...

hmmm... it very well portray's the human nature... its difficult for some to xpress in words and some can do it so well that they dont feel its difficult...

sumit said...

dat was fantastik.....wakaai bahuttt accchi baat likhi hai aapney...