Thursday, May 28, 2009

डाईरी के पन्ने

डायरी के पिच्च्ले पन्नो से फिसलकर वो सुखा गुलाब आज टूट गया,
लगा ,मानो तेरे साथ गुज़ारा वो लम्हा रेत बन कर हाथों से छुट्ट गया ,

तेरे बाद जिन रिश्तो को निभाया था मेरे डायरी के पन्नो ने ,
हमारा वो आखिरी रिश्ता भी आज उस सुखे गुलाब सा टूट गया,

कुछ पन्ने जिन्हे तेरी याद में सुबह-ओ-शाम रंगा था ,
उन पन्नो पर उभरा रंग आज स्याही सा छुट गया ,

औ टूट गई तेरी यादो से बंधी वो डोर आखिरी,
मेरी डायरी का वो सुखा गुलाब आज मेरा वजूद लूट गया......

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