कोई समझाए इन सिरफिरों कों,
गोलिया कोई धर्म नही जानती ,
इसे हिंदू या मुस्लिम का फर्क नही,
मौत कों ही ये अपना है कर्म मानती
कोई समझाए इन सिरफिरों कों,
बारूद की कोई जात नही होती,
ज़ख्मो से बहते खून कों समझे,
ऐसी इसमे ज़ज्बात नही होती,
कोई समझाए इन सिरफिरों कों,
आतंक मजहबों कों नही मानता,
ये अंत की शुरुआत है ,
ज़िन्दगी के मायेने नही जानता
कोई समझाए इन सिरफिरों कों,
लहू के कभी दो रंग नही होते,
हमे धर्मो के नाम पर ना बांटो,
क्यूंकि भाइओ में कभी ज़ंग नही होते
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